Madhu varma

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लेखनी कविता -तान की मरोर -माखन लाल चतुर्वेदी

तान की मरोर -माखन लाल चतुर्वेदी 


तू न तान की मरोर
 देख, एक साथ चल,
तू न ज्ञान-गर्व-मत्त--
शोर, देख साथ चल।

 सूझ की हिलोर की
 हिलोरबाज़ियाँ न खोज,
तू न ध्येय की धरा--
गुंजा, न तू जगा मनोज।

 तू न कर घमंड, अग्नि,
जल, पवन, अनंग संग
 भूमि आसमान का चढ़े
 न अर्थ-हीन रंग।

 बात वह नहीं मनुष्य
 देवता बना फिरे,
था कि राग-रंगियों--
घिरा, बना-ठना फिरे।

 बात वह नहीं कि--
बात का निचोड़ वेद हो,
बात वह नहीं कि-
बात में हज़ार भेद हो।

 स्वर्ग की तलाश में
 न भूमि-लोक भूल देख,
खींच रक्त-बिंदुओं--
भरी, हज़ार स्वर्ण-रेख।

 बुद्धि यन्त्र है, चला;
न बुद्धि का ग़ुलाम हो।
 सूझ अश्व है, चढ़े--
चलो, कभी न शाम हो।

 शीश की लहर उठे--
फसल कि, एक शीश दे।
 पीढ़ियाँ बरस उठें
 हज़ार शीश शीश ले।

 भारतीय नीलिमा
 जगे कि टूट-टूट बंद
 स्वप्न सत्य हों, बहार--
गा उठे अमंद छन्द।

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